बेरोजगारों के सबसे बड़े शोषण कर्ता !!!

रविवार, सितंबर 26, 2010 1 Comments A+ a-

 इस  देश के लगभग ७०% बेरोजगार अपनी जिंदगी मे कम से कम एक बार तो अखबार के क्लासिफ़ाईड झोन वाले नौकरी के इश्तेहार को देखकर उस नौकरी कि आस मे अपना घर बार छोड्कर शहर कि और खिंच जाते है । और उस नौकरी का वास्तवीक स्वरुप से अपने सपनों के बनते आचार कि खाटास से वे बुरी तरह टुट जाते है । और ४०% से ५५% बेरोजगार अपने गांव वापस लौट जाते है और ३०% से १५% प्रतीशत बेरोजगार अपनी जिम्मेदारी निभाने कि जिद से और कुछ गांव मे होनेवाली बदनामी के डर से शहर के उन गुमनाम विराने मे खो जाते है जहां खो जाने के क्वाब भी उन्हे गलती से ही आया करते थे ।
और इसी तरह नौकरी सोलाने के वादे देकर हजारों , लाखों और करिदिब का चुना लगाने वाले भी तो शामिल है जिन लालचियों  ने समाज में शिक्षितों के शोषण में कोइ कमी और नरमी नहीं बक्षी .
जनाब आपके ब्लॉगर मित्र इस मुसिबत को काफ़ी करीब से जानते है और एक अच्छा खासा अनुभव भी रखते है । (इस अनुभव को जल्द ही मूर्त रूप में प्रकट करने पर काम् कर रहा हु जल्द से जल्द आप तक पहुँचाने में प्रयासरत हु )
अखबार पढ्ना वैसे मै कुछ खास पसन्द नहिं करता था क्युंकी टिवी कि बकबक थमें तभी तो कोई अखबार ले ना ! और मुझे लगता था कि अखबार पढ्ना उन का काम है जिनके पास वक्त हि वक्त हो या जिनकी उम्र ६० पार कर चुकी हो ।
अब बात चली है तो आपको ऐसे ठकसेनों के शागिर्दों का तारुफ़ करा दु जो हिन्दुस्थान कि पढि लिखी जनता को बेवकुफ़ बना रही है । आप कोई भी एक अखबार उठा लीजिये और उनमे इश्तीहार के पान्ने को जरा गौर से पढें......
" शासन मान्यताप्राप्त कम्पनी मे ७ वी कक्षा के लेकर आगे जो भी शिक्षीत अर्जी करना चाहे कर सकता है । तनख्वाह ७००० से १०००० हजार , रहना खाना फ़्री !!!
काल करें : १२३४५६७८९०"

कुछ ऐसे आशय के इश्तेहार आप देख पायेन्गे जिनमे जदातर ऐसि मार्केटींग करने वाली कम्पनीयां शामील है जो इस तरह के इश्तेहार देकर बेरोजगार युवकों क शोषण करते है और उन्हे बेहद / करिब करीब न के बराबर तन्ख्वाह देकर और सिर्फ़ एक वक्त क खाना देकर उन्हे दिन भर सारे शहर मे वे घटीया प्रोडक्ट्स बेचने का काम दिया जाता है जो किसी ब्रान्डेड कंपणी कि "नकल" होती है । पहले ही फटी जेब से बेहाल और ऊपर से बेरोजगार अपने असली कगजात जमा कराने कि वजह से मुंह से उफ़्फ़ तक नहीं कर पाता और उन पाखंडीयों की दुकान आसानी से चल जाती है । अगर कोई लड्का विद्रोही लगे तो उसे फ़ोरन ऐसे जगह पे भेज दीया जाता है जो उसके शहर से कम से कम २ दिन के सफ़र इतना लम्बा हो जिससे कोई अवाज बाहर नहीं आ पाती ।
आज महानगरों मे इन फ़रेबीयों की दुकान एक नेट्वर्क का रुप इख्तीयार कर चुकी है और यह एक ऐसा नासुर है जिसे लोकतन्त्र के चौथे स्तंभ ने अपनी नादानी और लालच से सींचा है और बेरोजगारी कि मार झेल रहे युवकों के जरा सी लापरवाही, जोश और कमाने के जुनुन से इस गोरखधंदे को ताकद बक्शी है ।


आपसे  प्रार्थना है के किसी भी तरह के इश्तेहार की सौ प्रतीशत सच्ची जान्च करने के बाद ही उस पर अमल करें , किसी लुभवने मे ना आयें । और अगर आप के आस पडोस कोई इस तरह कि हरकत कर रहा है तो पुलीस को खबर कर दें।
याद रखिये आपकी पैनी नजर ही आपको बचा सकती है |
धन्यवाद !